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Thursday, March 19, 2009

रौशनी है शराबखानों की........


शहर-ए-चरागाँ में अब ए दोस्त, रौशनी है शराबखानों की...
असल में अब यही हाल है इस शहर का जिसकी गलियाँ चमचमाते दुधिया रंग की रौशनी से लबरेज रहती थी। पचास साल पहले बसाए गए इस शहर की सड़कों के दोनों किनारों पर लगे तेज रौशनी देने वाले बल्बों ने कभी अँधेरा नहीं होने दिया।अँधेरा अब भी नहीं है, फर्क सिर्फ इतना है कि अब शहर भर में सड़कों के किनारों पर शराब के इतने ठेके और शराबनोशी के इतने ठिकाने खुल गए हैं कि उनकी रौशनी ने शहर भर कि सड़कों को रोशन कर रखा है।
यकीन करना पड़ेगा कि चंडीगढ़ शहर कि हद में मौजूद ठेकों, आहातों, बारों और पबों कि तादाद इतनी हो गयी है कि रकबे के हिसाब से ही आधे किलोमीटर पर एक ठेका है.सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि शहर चलाने वालों की इस दारु-दरियादिली का नतीजा है कि शहर के बाशिंदों के मुंह को नशा लग गया है. गुजिश्ता एक साल के भीतर ही शहर में बियर कि खपत में पांच सौ गुणा इजाफा हुआ है. इस लिहाज से चंडीगढ़ ने प्रति व्यक्ति बियर कि खपत के मामले में दिल्ली और मुंबई को भी पीछे छोड़ दिया है. आंकडेबाजी के नजरिये से शहर का हर आदमी 4.64 लीटर बियर गटक रहा है. दिल्ली में यह आंकड़ा 3.69 और मुंबई में 3.33 है. देश में प्रति व्यक्ति बियर की खपत 0.82 लीटर है।
सरकारी आंकडों का यह भी कहना है कि साल 2005-06 के दौरान शहर में बियर की करीब डेढ़ लाख पेटियां बिकी थी जो उससे अगले साल बढ़कर सवा सात लाख हो गयी थी. इस साल इस में और भी इजाफा हुआ है. बहरहाल, हालात यह हैं कि इस वक़्त शहर की म्युनिसिपल्टी के 144 किलोमीटर के दायरे में 192 ठेके, 100 आहाते, 90 बार, पांच क्लब जिनके पास दारु परोसने का लाइसेंस है, लोगों को नशे की ओर खींचे रखने के काम में जुटे हैं. इस लिहाज से शराब मिलने के कुल ठिकानों और शहर के रकबे को तकसीम किया जाए तो हर आधे किलोमीटर पर एक ठेका है. जाहिराना तौर पर इतने सारे ठेकों की रौशनी की जगमगाहट तो होगी ही।
कुछ तरक्कीयाफ्ता लोग इसकी तारीफ़ कर रहे हैं कि लाट साहब जनाब गवर्नर एसएफ रोड्रीग्ज़ ने शहर को गोवा बना दिया जहाँ फैशनेबल लोग अपनी फैमिली के साथ बैठकर शराब पीते हैं और औरतें-लड़कियां शर्म-लिहाज और फैशन के नाम पर रैड वाइन पीती हैं, जिसे पीने में कोई हर्ज़ नहीं समझा जाता. इधर, शहर में बड़ी तादाद ऐसे नौकरीपेशा लोगों की भी है जो सरकारी बाबूगिरी की तरह ही सामाजिक जिम्मेदारियां, नैतिकता और संस्कृति से बंधे हैं और रोज सुबह मंदिर जाने और रास्ते में खुल गए एक ठेके वाले को जहन्नुम में भी जगह नसीब नहीं होने की दरियाफ्त करते हुए दिन की शुरुआत करते हैं. इस वर्ग को लगता है कि लाट साहब को खुश करने के चक्कर में प्रशासन शहर को क्रिस्तानी बनाने पर तुला हुआ है. इन लोगों के लिए क्रिस्तानी और कारस्तानी पर्यायवाची बन गए हैं. सेक्टर 37 में रहने वाले जतिंदर शर्मा इनमें से एक हैं. इनका कहना है कि शहर भर में शराब के ठेके खुलने के बाद उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है जैसे धर्म और आस्था से जुडे लोगों का इस शहर से कोई वास्ता ही नहीं रह गया है. उनका सवाल है कि क्या इस तरह हर मोड़-नुक्कड़ पर ठेके खोलने से पहले नहीं पीने वालों की भी कोई राय ली गयी?
खैर, हालत यह है कि सेक्टर 17 और 22, दो ही सेक्टरों में ठेके-आहातों की तादाद 23 हो गयी है. इसी तरह मध्यमार्ग पर पंचकुला बॉर्डर तक दस और दक्षिण मार्ग पर आठ ठेके खुल गए हैं. प्रशासन ने कमर्शियल, इंडस्ट्रियल एरिया और झुग्गी-बस्तियों में ठेकों की तादाद तय करने वाला क्लाउस भी हटा लिया ताकि मजदूर और दिहाड़ीदार दिनभर खट्टें और शाम को हरारत उतारने और गम भुलाने तरह लिए ठेकों पर फूंक दें दिनभर की कमाई. और फिर बीमार होने पर सरकारी अस्पताल तो हैं ही. शराब पीने से गुर्दा-जिगर खराब होने पर इलाज का जिम्मा भी सरकार तरह सर. सेक्टर 15 का एक दुकानदार शराब पीकर लीवर खराब कर बैठा, अब दाखिल है फोर्टिस अस्पताल में. करीब 15 लाख रुपये लग गए है।
शराब पीने की बढती प्रवृति के कारण को शराब का आसानी से उपलब्ध होना भी माना जा रहा है. शाम को दफ्तर से निकलते ही सामने ठेका, मन मारकर निकल भी गए तो घर तक पहुँचते न पहुँचते दस ठेके-आहाते मिल जायेंगे. कहाँ तक बचेंगे शराब पीकर मर्द बनने को उकसाती अधनंगी लड़कियों के बैनर-पोस्टरों से. शराब छुडाने वाली संस्था अल्कोहलिक अनोनिमस से जुडे अनिल कौडा का मानना है कि शराब छोड़ने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रयासों को प्रशासन के ऐसे कदम से नुक्सान ही होगा. शराब पीने वाले की बजाय शराब छोड़ चुके व्यक्ति से पूछिए कि इतने ठेके खोलकर प्रशासन राजस्व के बीस करोड़ अधिक कमा भी लेगा लेकिन कितनी जिंदगियों में अँधेरा डाल देगा.

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