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Sunday, December 20, 2009

रहें ना रहें हम, महका करेंगे....



खबर तो मुझे बहुत पहले ही मिल गयी थी अखबारों से, लेकिन देखने जाने का वक़्त निकाल ही नहीं पाया. और कल जब मैं वहां पहुंचा तो देखा कि मेरी यादों में इक्कीस साल तक बसा रहा वो टावर अब नहीं रहा. और तभी मुझे समझ आया कि यह टावर यादों में तो असल में आएगा अब ही.
यही तावेर जिसकी तस्वीर आपदेख रहे हैं, अब नहीं है. जैसा कि आप दूसरी तस्वीर में देख पा रहे हैं. खबर यह है कि बिजली की तारों में शॉर्ट सर्किट हो जाने के कारण इसमें करवा चौथ की रात आग लग गयी और चाँद देखने आयी संक्दों औरतों की मौजूदगी में टावर खाक हो गया. जले हुए टावर के अवशेष हटा दिए गए हैं. इसे फिर से नहीं बनाये जाने के पीछे सरकारी अफसरों के जो भी तर्क हों, मेरा तर्क है कि आवारगी के शुरूआती दौर कि मेरी यादों के साथ जुड़े रहे इस टावर को मैं बहुत याद करूँगा.
यह बात 1988 की है जब हम नए नए कालेज जाने लगे थे. बोटनी क्लास का लेक्चर बंक करके झील पर जान शुरू किया था. और तभी से झील के बीचोबीच बने टापू पर जाने की इच्छा उठी. वहां जाना मना था. टापू पर जाने का एक ही तरीका था और वह था किश्ती से जाना. लेकिन किश्ती टापू के पास रुकते ही सुखना झील के गार्ड मोटरबोट लेकर आ पहुँचते. टापू पर जाने की इच्छा बढती जा रही थी.
खैर, उन्हीं दिनों चंडीगढ़ की सुखना झील में आल इंडिया रोइंग चैम्पियनशिप हुयी थी. झील के आखिरी छोर तक देखने के लिए झील के बीचोबीच बने टापू पर यह निगरानी टावर बनाया गया था. और टापू पर जाने के लिए किश्तिओं को एक लाइन में खड़ा करके उनके ऊपर से पुल बनाया गया. लेकिन वहां जाने की इजाजत सिर्फ स्पोर्ट्स से जुड़े लोगों को ही थी. चूँकि पंजाब में आतंकवाद का दौर चल रहा था, सो इस पुल की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ तैनात की गयी थी. एक दो बार कोशिश की पुल पार करके टावर पर जाने की, लेकिन सीआरपीएफ वालों ने भगा दिया.
जिस दिन चैम्पियनशिप ख़त्म हुयी, उस दिन चहल-पहल में मौका मिल गया और मैं टापू पर जा पहुँच. टावर के ऊपर तक जाने का मौका भी हाथ लग गया. वहां से सुखना झील समंदर सी लगी. टावर के ऊपर खड़े होकर पानी देखने से लगा जैसे जहाज में बैठे हों. बस उसी दिन से उस टावर के साथ मेरी यादें जुड़ गयी. हालांकि मैं उसपर दुबारा नहीं जा सका.
चैंपियनशिप तो एक हफ्ते में ख़त्म हो गयी, लेकिन टावर को नहीं हटाया गया, और वक़्त के साथ टावर सुखना के साथ जुड़ गया. एक पहचान के तौर पर. हज़ारों लोगों ने इसके फोटो लिए और सुखना पर आने की याद बनाया. अब नहीं है. अब यादें हैं.

1 comment:

अजय कुमार said...

बदलाव होते रहते है लेकिन यादें रह जाती हैं


कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये