इक शहर था, वो क्या हुआ...

चंडीगढ़ को मैंने जवान होते देखा है...मेरे साथ-साथ ही बड़ा हुआ है. मैं इसकी नब्ज़ को पहचानता हूँ. इसके चौक-चौराहों और बाजारों को आबाद होते तो देखा ही है, इसकी पहचान इसके चौराहों को ख़त्म होते भी देख रहा हूँ. इसी शहर से जुडी कुछ यादें और बातें....

Thursday, March 8, 2012

ये जो थोड़े से हैं पैसे, खर्च तुम पर करूं कैसे...!!

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कल सेक्टर 17 के गलियारों में घूमते हुए इंडियन कॉफ़ी हाउस के सामने से गुजरते हुए एक फिल्टर कॉफ़ी की तलब हुई. फिर दूसरे ही पल मेरे आठ साल के ...
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Sunday, November 20, 2011

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने...!!

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बिग सिनेमा मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाने से पहले ही मेरे बेटे ने दो शर्तें रख दी. पहली यह कि डायमंड कटेगरी की टिकट लेनी पड़...
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Wednesday, November 2, 2011

खुश रहे तू सदा, ये दुआ है मेरी..

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अभी बचपन के दौर में है, शरीर में जोश है, इसलिए भीतर पनप चुकी बीमारी अभी उभर नहीं रही, लेकिन शर्तिया तौर पर जिस तरह शरह का मिजाज़ बदल रहा है,...
Saturday, July 23, 2011

बीती हुई ये घड़ियाँ फिर से ना गुजर जाएँ....

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मेरे सात साल के बेटे ने आकर कहा-पापा आपके पास चालीस रूपये हैं? मैंने कहा-हाँ, तो उसका जवाब आया कि -फिर टाटा स्काई पर 'एक्टिव गेम्स' ...
Saturday, May 22, 2010

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा...!!

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इतने साल तक चड़ीगढ़ में रहने के दौरान शायद शहर की सीमा में ही बसे इस गाँव में जाने की जरूरत शायद एक या दो बार ही पड़ी. इसलिए इस इस गाँव के ना...
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Sunday, April 18, 2010

दिल का क्या रंग करूं, खून-ए-जिगर होने तक..!!

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अब जब शहर यूनेस्को की हेरिटेज लिस्ट में आने को तैयार है तो शहर के हुक्मरानों को एक नया आईडिया आ गया है इस शहर की शक्ल-ओ-सूरत खराब करने का. ...
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Wednesday, February 10, 2010

दूर तक निगाहों में है गुल खिले हुए..

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चंडीगढ़ में फिर से गुलों का मौसम आ गया है. शहर के बागों में फूल खिल उठे हैं...शहर के मशहूर रोज़ गार्डन में गुलाब खिलखिलाने लगे हैं. क्यारियो...
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dr ravi sharma
'कुछ तो तेरे प्यार के मौसम ही मुझे रास कम आए, और कुछ मेरी मिट्टी में बगावत भी बहुत थी'. बस यही है मेरी फितरत. कुछ ही लोग मेरे दिल और दिमाग तक पहुँच पाते हैं. वैसे तो किसी शायर ने कहा है कि 'परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं रहता', लेकिन मेरी आदत है छोटी छोटी बातें पकड़ना और उनका विश्लेषण करते रहना. और बगावती मिट्टी से पैदा हुई सोच का ही नतीजा है कि डाक्टरी की प्रेक्टिस छोड़कर पत्रकार बन गया...!!! रास तो खैर यह भी नहीं आ रहा.
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