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Wednesday, February 10, 2010

दूर तक निगाहों में है गुल खिले हुए..




चंडीगढ़ में फिर से गुलों का मौसम आ गया है. शहर के बागों में फूल खिल उठे हैं...शहर के मशहूर रोज़ गार्डन में गुलाब खिलखिलाने लगे हैं. क्यारियों जैसे रंगोली बन गयी हैं. रोज़ गार्डन अब भी उतना ही खूबसूरत है जितना आज से दशकों पहले हुआ करता था. वही गुलाबों से सराबोर माहौल. पहली बार यह रोज़ गार्डन देखने का मौका कब मिला था यह तो ठीक से याद नहीं, शायद सत्तर के दशक के आखिरी सालों में जब हम चंडीगढ़ के बाशिंदे बने तब देखा था...लेकिन तब ध्यान रोज़ गार्डन में न होकर पास ही के खाली मैदान में चल रहे दिवाली मेले के झूलों में अटका था. अब तो वहां जगह नहीं बची है जहाँ वह दिवालो मेला लगा हुआ था. बस अड्डा बड़ा हो गया है, पास के खाली जगह को पहले सर्कस ग्राउंड कहते थे, लेकिन वहां भी आजकल कुछ बन रहा है शायद मल्टी-लेवल पार्किंग या कुछ और.
खैर, बात रोज़ गार्डन की हो रही थी. पहली बार अकेले यहाँ आने का मौका शायद '84 की फरवरी में मिला था. आठवीं के बोर्ड के इम्तिहान थे. सेंटर सेक्टर 23 का सरकारी स्कूल बना था. आखिरी पेपर शायद ड्राईंग का था. पेपर खतम होने की ख़ुशी और 'ड्राईंग में कौन सा पढ़ना होता है' की कहावत पर अमल करते हुए पेपर से दो दिन पहले ही स्कीम बना ली थी पेपर के बाद आवारागर्दी की. प्रोग्राम तो था सेक्टर 'सतारां' जाकर शहर की एकमात्र वीडियो गेम वाली दुकान 'वाईब्रेशन' पर कब से इकट्ठे किये हुए पांच रुपयों से मजे करने की. सो, पेपर में फ़टाफ़ट कलाकृतियाँ बनाकर भाग निकले हम. मेरे साथ तिरलोक ठुकराल से अलावा और कौन था, अब ठीक से याद नहीं..पुरानी बात हो गयी है. इतना याद है कि चार-पांच का ग्रुप था. सो, सेक्टर 23 से निकलकर सेक्टर 16 होते हुए जब हम जा रहे थे तो शायद मनीष का आइडिया था कि स्टेडियम के पीछे से कच्चे रास्ते से साइकलें चलाने का मज़ा लेते हुए वीरान रहने वाले शांति कुंज से शॉर्टकट मारेंगे. उन दिनों शांति कुंज एक जंगल से अधिक कुछ नहीं था जिसमे आदमकद घास लगी थी और बीच में से गुजरने वाले नाले के पास शराब पीने वालों ने पक्का ठिकाना बना रखा था..यह बातें भी हमें मनीष से ही पता लगी. बाद में मनीष ने अपने जीवन की पहली सिगरेट इसी पार्क में बैठकर पी थी...और यह भी कह था..'यार अगर इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया तो सिगरेट छोड़ दूंगा.. बाद में उसने नॉन-मेडिकल ही छोड़ दिया था.
तो बारास्ता शांति कुंज गुजरते हुए मैंने पहली बार रोज़ गार्डन देखा. उस से पहले किताबों में छपने वाली फोटो के लाल रंग वाले फूल को ही गुलाब समझता था. उस दिन देखा गुलाब न सिर्फ लाल था बल्कि पीला, सफ़ेद और दो-रंगा भी. उसका असर यह हुआ कि मैं और तिरलोक तो वहीँ रुक गए, लेकिन बाकियों को वीडियो गेम का मोह रोक नहीं पाया.
बाद में शायद एक-दो बार ही जा पाया रोज़ गार्डन में, लेकिन इसके बाहर से गुजरने वाले मध्य मार्ग से लगातार आना जाना होता रहा.
तीन दिन पहले एक केस के सिलसिले में हम सब घंटों से कोर्ट के सामने खड़े थे. अचानक राकेश गुप्ता ने सुझाव दिया कि सामने तक सैर करते हैं.. सैर करते हुए रोज़ गार्डन पहुंचे और पाया कि रोज़ गार्डन आज भी वैसा ही खूबसूरत है.
चंडीगढ़ के बाशिंदों के अलावा लोग शायद यह न भी जानते हों कि यह रोज़ गार्डन एशिया का सबसे बड़ा रोज़ गार्डन है..करीब 27 हज़ार वर्गफुट में फैला हुआ और इसमें गुलाब के 17 हज़ार से अधिक फूल हैं..वह भी कम से कम अढाई सौ किस्मों के...व्हाईट हॉउस, स्नो व्हाईट और किस ऑफ फायर जैसे नामों वाले.
हाँ..अब शांति कुंज भी संवर गया है..शायद शहर के सबसे अच्छे पार्कों में से एक...!! जिस पेड़ के नीचे मनीष ने उन दिनों की सबसे महंगी सिगरेट 'डनहिल' का पहला कश लिया था, उस पेड़ के आसपास अब फूलों की क्यारियां हैं..प्टुनिया के मुस्कुराते हुए फूल..!!