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Sunday, April 18, 2010

दिल का क्या रंग करूं, खून-ए-जिगर होने तक..!!


अब जब शहर यूनेस्को की हेरिटेज लिस्ट में आने को तैयार है तो शहर के हुक्मरानों को एक नया आईडिया आ गया है इस शहर की शक्ल-ओ-सूरत खराब करने का. मुझे नहीं लगता कि यह आईडिया किसी अफसर के दिमाग की उपज है क्योंकि या तो ये एयर कंडिशनर लगे दफ्तरों से निकलते नहीं, निकलते हैं तो सरकारी कारों के काले शीशों पर भी परदे लगाकर. और जहाँ तक शहर के हुक्मरानों के सेक्टर 17 आने का सवाल है, मैंने पिछले लम्बे समय से इतने बड़े किसी अफसर को सेक्टर 17 में नहीं देखा जो शहर के बारे में बड़ा फैसला लेने की औकात रखता हो.
सेक्टर 17 के बारे में वही लोग फिक्रमंद होसकते हैंजो दिनमें कम से कम एक बार या हफ्ते में दो बार यहाँ सिर्फ घूमने या किसी पेड़ के नीचे बैठकर चाय पीने के लिए आते हों. मैं दूसरी किस्म का हूँ, मतलब जो यहाँ किसी पेड़ के नीचे बैठकर चाय पीते हुए इस शहर का नक्शा बनाने वाले फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कर्बुजिये की समझ और पसंद को 'डिकोड' करने की फिराक में है. ली कर्बुजिये की इस समझ और पसंद को इस सरकारी अफसरों की तरह मैं भी अब तक डीकोड नहीं कर पाया हूँ कि उसने शहर के दिल कहे जाने वाले सेक्टर 'सतारां' की इन इमारतों पर पेंट क्यों नहीं किया था, और सिर्फ सीमेंट के रंग की इन इमारतों में वोह कौन सी खूबसूरती है कि इसको पेंट करने के सरकारी इररादों के खिलाफ मेरे जैसे कई लोग उठ खड़े हुए हैं.
सुना है, किसी ठेकेदारनुमा छूते अफसर ने बड़े साह्बोंको यह आईडिया दे दिया है कि सेक्टर 17 की इमारतों को पेंट कर देते हैं. जाहिर है, किसी ठेकेदार को काम मिलेगा तो सबको फायदा होगा. जैसा कि चंडीगढ़ में डेपुटेशन पर आने वाली अफसरशाही की समस्या है, यह लोग फाईलों से आगे देखते ही नहीं. चंडीगढ़ में आने वाले यह अफसर यह जानने की कोशिश भी नहीं करते कि चंडीगढ़ सिर्फ एक शहर भर नहीं है, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का नए भारत के लिए देकः एक ऐसा सपना है जो देश की पुरानी सोच को बदलने का संकेत हो. ली कर्बुजिये ने वही बनाकर दे दिया, लेकिन यह रिटायरमेंट की दहलीज पर बैठे पुराने बाबू लोग नौकरी की फ़िक्र में घर से दफ्तर के रास्ते के अलावा इधर उधर देख ही नहीं पाए. गाँव- क़स्बा छोड़कर यहाँ सरकारी नौकरी के लालच में बैठे बाबुओं के इस शहर का जिओग्रफ़िया और आर्किटेचर न तो समझ आया और न ही रास आया.
खैर, अब यह है कि, ली कर्बुजिये के साथ काम कर चुके और पंजाब के पहले चीफ इंजिनीयर रह चुके एमएन शर्मा ने सेक्टर सतारां की इमारतों अपर रंग रोगन करने के खिलाफ आवाज़ तो उठाई है, शहर को यूनेस्को के हेरिटेज सिटी का दर्जा मिलने का वास्ता भी दिया है, देखते हैं, अकल कम करती है या ठेकेदारों की लॉबी.

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

निश्चित रूप से ठेकेदारों की लाबी