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Saturday, March 14, 2009

फिज़ा के भेस में गिरते हैं पत्ते चिनारों के....


'कुछ तो तेरे प्यार के मौसम ही रास मुझे कम आये, और कुछ मेरी मिट्टी में बगावत भी बहुत थी'।
पत्थरों के इस शहर में कुछ ऐसी ही रोमानियत लाने के लिए शायद इस शहर के नक्शानवीस ने सड़कों के किनारों पर ऐसे दरख्त लगाने की ताकीद की थी जिनके पत्ते झरते हों....
पर यह सब उन लोगों के लिए था जो सूखकर झरे या झरकर सूखे पत्तों में भी खूबसूरती देख पाते, सुर्ख दोपहरियों में जब शहर के रास्ते सुनसान हो जाते हों तो इन्हीं सूखे चरमराते पत्तों पर चहलकदमी करते हुए गुजर गए खुशनुमा माहौल को याद करने का वक़्त निकाल पाते और याद कर पाते कि इन्हीं सूख कर झर गए पत्तों के साथ इस शहर में बहने वाली हवा सरगोशियाँ किया करती थी।बहरहाल, रोमानियत से बाहर आकर मेट्रोपोलिटन बनते जा रहे इस शहर के मौजूदा हालातों और बाकी दुनिया की तरह तेज रफ़्तार जिंदगी की अंधी दौड़ में शामिल हो चुके यहाँ के बाशिंदों की बात करें, तो शायद यहाँ की आधी आबादी भी इस बात से अनजान होगी कि इस शहर के हर गली-नुक्कड़ पर लगे आज के पेड़ों को रोपने से पहले फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कर्बुजिये ने उस पौधे की जात-नस्ल को अच्छी तरह जाना था. और यह ख़ास तौर पर जाना था कि किसी मौसम में हवा का रुख और मिजाज़ क्या रहता है, और कौन से वे पेड़-पौधे हैं रात भर में ही पुरवाई से पच्छ्वा बन जाने वाली हवा कि इस रंग बदलने की फितरत को बर्दाश्त नहीं कर पाते और रातभर में ही मारे शर्म के झर जाते हैं। इस शहर की सड़कों के किनारे लगे पेड़ इस बात के गवाह हैं की शहर बसाने की सोच में यह भी शामिल किया गया था कि पेड़ों की किस्मों और हवा के रुख को टकराने नहीं दिया जाए। यही सोच 'ऑटो स्वीप' नाम की तकनीक बनकर उभरी। इस तकनीक में हवा चलने की दिशा और पेड़ों के पत्तों के गिरने के मौसम को 'सिंक्रोनाईज़' किया गया था ताकि बहती हुयी हवा खुद-ब-खुद झरे हुए पत्तों को बुहारकर सड़क के एक किनारे पर जमा कर दे और कुदरत इस दौलत को बेजान मोटर गाड़ियों के पहियों तले रौंदने से बचा ले।
जहाँ तक सवाल पत्तों के झरने का है तो यह जानना भी रोचक है कि शहर की सड़कों के किनारे लगे पेड़ों से हर साल सैकडों नहीं, हजारों ट्रालियां भरकर सूखे पत्ते उठाये जाते हैं. यह बात और है कि इन पत्तों को बुहारकर एक तरफ ढेर लगाने वाले सफाई कर्मचारी कई बार इनमें आग लगाकर चलते बनते हैं. इससे शहर है धुंआ और प्रढूषण तो फ़ैल ही रहा है, सांस की बीमारियों से परेशान लोगों के लिए भारी दिक्कत का सबब बनता है. हालांकि सरकारी तौर पर सूखे पत्तों को जलाने पर पूरी पाबंदी है, लेकिन कानून को नहीं मानने वालों की अपनी एक जमात है. वैसे लोगों को पूरा यकीन है की सड़कों के किनारे सड़ जाने वाले इन पत्तों में इतनी ताकत है कि इनसे निकलने वाले ईंधन की आग भट्टों को जलाए दे रही है।
जानकारी यह भी है कि इन पत्तों से फायदा उठा लेने की सोच रखने वाले कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने कुछ साल पहले यही जानकारी और सुझाव दिया था कि इन पत्तों को इकट्ठा करके ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. सुना गया कि यह सुझाव नगर निगम के अफसरों के पास भी भेजा गया था, लेकिन पत्तों के ईंधन से निकलने वाली आग अफसरों के दिमाग को रोशन नहीं कर सकी. नतीजा, पत्ते सड़कों पर ही पड़े रहते हैं और अधिक से अधिक ट्रालियों में भरकर शहर की हद से भहर फिंकवा दिए जाते हैं. जानकारी यह है कि पत्तों को ऊर्जा में बदलने की फाइल नगर निगम कई साल पहले ही बंद करवा चुका है. पत्तों से निजात पाने के जुगाड़ में इन्हें जला देने का खामियाजा सफाई कर्मचारी मुअतली या हर्जाना भरने के तौर पर चुकाते हैं. तकनीकी जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इन पत्तों को ईंधन में बदल कर कई सरकारी दफ्तरों में ईंधन के लिए इस्तेमाल हो रही एलपीजी की खपत में भारी कमी की जा सकती है. यह बता दें कि जिन पत्तों को बेकार समझकर इसके प्रोपोजल को ठिकाने लगा दिया गया है, उन्ही पत्तों से ईंधन बनाने वाले प्लांट गुजरात में इतने अधिक हैं कि वह हर साल करीब तीस हज़ार टन छिलका-पत्तों से बना ईंधन पंजाब के भट्टों को सप्लाई करते हैं. पर्यावरण से जुड़े लोगों ने कुछ समय पहले गैर परम्परागत ऊर्जा विकास विभाग से इन पत्तों से निकलने वाली ऊर्जा की जांच कराई थी. इनकी 'हीट वैल्यू' 3942 पायी गयी थी, जिसका मतलब है कि यह पत्ते अच्छा ईंधन साबित हो सकते हैं।
खैर, शहर में फिर पतझड़ आया है. पत्तों के ढेर लगे हैं. पर सुना है कि लाट साहब के दफ्तर से हुक्म है कि इन सूखे पत्तों को जलाया न जाए, दफ्न किया जाए और वह भी उन्हीं पेड़ों के नीचे गड्ढा खोदकर जहाँ से यह गिरे हैं.... 'न कहीं जनाजा उठता, न कहीं मजार होता॥'!!

6 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर रचना..ब्लौग जगत में स्वागत है.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

विचारोत्ते्जक लेख है.मैं तो ये ही कहुगां कि:

"हम सितारों की चमक में इस कदर मसरूफ़ थे,
रोशनी में देखने का इल्म ही जाता रहा।"

लिखते और बांट्ते रहें।
www.sachmein.blogspot.com

Unknown said...

बहुत सुंदर…..मेंरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं

Ek ziddi dhun said...

दोस्त, आप पैरा जरूर दिया करें।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah! narayan narayan