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Thursday, March 26, 2009

गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता....















इन दिनों चंडीगढ़ में रंगों की बहार है. हर तरफ रंग भरी फिजाएं हैं. पेड़ों से रंग बरस रहे है। दुनिया का तो मुझे नहीं पता, लेकिन इतना जरूर है कि देश में दूसरा ऐसा कोई शहर नहीं है जहाँ गर्मी की शुरुआत इतनी रंगीन और हसीं होती हो। ऐसा लगता है जैसे बहुत सारे गुलमोहर एक साथ खिलखिलाकर हंस पड़े हों।
दरअसल, चंडीगढ़ में मार्च का महीना अपने आप में हसीं होता है। चंडीगढ़ में रहने वालों को तो नहीं पता, लेकिन बाहर से आने वाले देख सकते हैं कि शहर की सड़कें किस तरह रंगीन लबादे पहने खड़े पेड़ों के रंग में रंगी है। मार्च के महीने में शहर में दो तरह के बदलाव आते हैं। पहला, सडकों के किनारों पर लगे पेड़ों के इतने पत्ते झरते हैं कि सड़कें भर जाती हैं। इन पत्तों को उठाना एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
खैर, दूसरा बदलाव रोमानी होता है। पेड़ों के नए पत्ते निकलते हैं और एक ही महीने में कई रंग बदलते हैं। हल्के रंग के पत्ते निकलते हैं और कच्ची धूप के साथ रंग बदलते रहते हैं। हर रोज़ सडकों का रंग बदला हुआ मिलता है। रोज़ एक ही सड़क से गुजरकर जाने वाले भी हैरान होते हैं कि कल यहाँ किसी और रंग का पेड़ था, आज यह कहाँ से आ गया?
चंडीगढ़ में तीन किस्मों के पेड़ बहुत हैं। अमलतास, कचनार और गुलमोहर। गर्मियां आते ही यह तीनो चटक उठते हैं और महक देते हैं। सुखना झील के किनारे-किनारे करीब दो किलोमीटर लम्बे घास के मैदान के साथ-साथ चलती पगडण्डी पर लगे कचनार मार्च शुरू होते ही गुलाबी होने लगते हैं और अप्रैल आते-आते पत्तों की हरियाली छोड़कर पूरी तरह गुलाबी हो जाते हैं। इनकी छाया खत्म हो जाती है और सिर्फ रंग रह जाता है। हाँ, और एक रंग रह जाता है उसके तले। दुनिया की भाग-दौड़ से दूर अपनी ही दुनिया के रंग में खोये कई प्रेमी जोड़े आपको मिल जायेंगे इन कचनारों के नीचे बैठे। हालांकि कचनारों की छाया कम ही होती है, लेकिन प्यार में धूप का रंग भी गुलाबी लगता है।
शहर में अमलतास के पेड़ भी बहुतायत में हैं। शहर की पश्चिम से पूर्व की और जाने वाली सड़कों में से एक जन मार्ग के कई किलोमीटर लम्बे रास्ते पर अमलतास लगा है। गर्मी पड़ते ही अमलतास के पीले फूल ऐसे खिल उठते हैं कि रास्ता देखते ही बनता है। एक बात और; अमलतास के पेड़ों पर झींगुर रहते हैं जो सुबह होते ही बोलना शुरू करते हैं और शहर कि सुनसान दोपहरियों को रोमांटिक बना देते हैं। पता नहीं क्यूँ मुझे लगता है कि उदय प्रकाश ने उनकी कहानी 'पीली छतरी वाली लड़की' किसी अमलतास के पेड़ के नीचे से गुजरते हुए ही सोची होगी।
अमलतास से ही मुझे करीब तीन दशक पुरानी बात याद आ गयी। बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था। तीसरी क्लास में। चंडीगढ़ के सेक्टर 21 ऐ में रहा करता था। मेरे घर के आगे की सड़क पर कचनार के पेड़ लगे थे और मैं कचनार की कलियों के गुलाबी रंग से अपना नाम दीवार पर लिखा करता था। अप्रैल के दिन थे। स्कूल की छुट्टियाँ थी। चंडीगढ़ में मेरा पहला क्लासमेट और दोस्त त्रिलोक ठकुराल था। वह सेक्टर 21 डी रहता था। उसके घर की कतार के आगे अमलतास के पेड़ लगे थे एक लाइन में। दूर तक। एक शाम मैं उसके घर चला गया और रात को वहीँ सो गया। हम दोनों ने फैसला किया कि हम घर के आगे वाले आँगन में गेट के पास बिस्तर लगा कर अमलतास के पेड़ के नीचे सोयेंगे। और अगली सुबह नींद खुलने पर मैंने पाया कि मैं जिस बिस्तर पर सो रहा था उसके ऊपर, मेरे चारों तरफ, पूरे आंगन में अमलतास के पीले रंग के फूल एक गोलाई में बिखरे थे। मैं बहुत देर तक यह सोच कर नहीं उठा कि मेरे उठने पर मेरे ऊपर और बिस्तर पर बिखरे पड़े फूल गिर जायेंगे। वह मेरे जीवन की सबसे सुंदर सुबह थी। अगर मुझे कोई एक अहसास फिर से महसूस करने का वरदान दे तो मैं वही सुबह मांगूंगा।
खैर, एक बात और बताना चाहूँगा चंडीगढ़ के बारे में। और वह यह कि चंडीगढ़ में इन तीन खूबसूरत रंगों के पेड़ों के अलावा तीन और अच्छे पेड़ों के झुरमुट हुआ करते थे जिनमें से एक शहर की भीड़ के तले कुचला गया। सेक्टर 29 में ट्रिब्यून चौक से लेकर सेक्टर 26 में ट्रांसपोर्ट लाईटों तक आम के हजारों पेड़ हैं। सरकारी हैं। इसे 'मैंगो ग्रूव' के नाम से जाना जाता है। इन्हें लगाने का कारण तो यह था कि पेड़ों के दक्षिण की तरफ के इंडस्ट्रियल एरिया की गर्मी और धुंआ इधर रिहायशी इलाके में न आये। दूसरा है, सेक्टर 22 ऐ में एक गोल सड़क के साथ साथ लगे नीम के बहुत से पेड़। बरसात के दिनों में निम्बोरी की महक दूर से ही महसूस की जा सकती है, बशर्ते, बचपन में आपने पककर मीठी हो गयी निम्बोरी खाकर देखी हों। एक और था ऐसा झुरमुट जो सेक्टर 20 से पूर्व दिशा में जाने वाली सड़क पर गोल्फ कोर्स तक लगाया गया था। वह था 'इमली अवेन्यु'। करीब पांच किलोमीटर लम्बे रास्ते पर इमली के सैकडों पेड़ थे। यह पेड़ उन दिनों लगाये गए थे जब शहर बस रहा था। और मकानों की कतारों की भूल-भुलैया में फंसने से पहले पहाड़ी हवा इन्हीं इमली के छोटे-छोटे पौधों के साथ लूका-मिची खेलती फिरती थी। पता नहीं बाद में इन्हें किसकी नज़र लगी। दीमक ने सैकडों पेड़ों को बर्बाद कर डाला। अब भी कुछेक पेड़ बचे हैं शहर के आबाद होने की यादें लिए। शुक्र है कचनार, अमलतास और गुलमोहर अभी बचे हैं और खिलखिला रहे हैं। शुक्र है इस हवा का भी जो गुलमोहर को हंसा रही है। मुझे किशोर कुमार का गाया एक गीत याद आ गया। 'गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता, मौसम-ऐ-गुल को हँसाना ही हमारा काम होता। '



7 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

शुक्र है इस हवा का भी जो गुलमोहर को हंसा रही है.बहुत sunder

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई चण्डीगढ की तो बात ही कुछ ओर है....हमारा तो तकरीबन हफ्ते दस दिन में चक्कर लगता ही रहता है..........

शायदा said...

ravi....gulmohar to kisi ka nam tha shayad...? gulmohar...amaltash...
khair tumhara blog achha laga. khoob likho.

विधुल्लता said...

मैं तो गुलमोहर नाम पढ़कर ही आपके ब्लॉग पर आगई हूँ..फूलों का -पेड़ों का और चंडीगढ़ की सड़कों का इतना खूबसूरत विवरण ...फूलों के बारें मैं सुनना -पढ़ना उन्हें देखना वाकई कुदरत के जादू जैसा है ,बधाई...वातावरण को फूलों से बुनने -रचने के लिए

mehek said...

wow bahut hi khubsurat chitra bhi vivaran bhi.

aditya chaudhary said...

wah wah wah wah waaaaaaaaaaaaaaaaaaaah

रंजू भाटिया said...

चंडीगढ़ तो शहरों में शहर है ...आपने इसको गुलमोहर पर लिखी पोस्ट से सजा कर और भी खूबसूरत बना दिया है ..