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Sunday, March 22, 2009

कुछ ख़ास है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...


अगर यह संयोग है, तो इससे बड़ा कोई संयोग नहीं हो सकता कि एक अत्याधुनिक शहर बसाने के लिए भवन निर्माण कला के जिस पश्चिमी मॉडल को 'लेटेस्ट' और 'साइंटिफिक' मना गया, उसकी जड़ें हजारों साल पुराने उस हिन्दू भवन निर्माण कला में हैं, जिसपर ज्योतिष विज्ञानं हावी है और पश्चिमी देश जिसे मान्यता तक नहीं दे रहे. अगर यह संयोग नहीं है, तो सच्चाई यह है कि चंडीगढ़ के आर्किटेक्चर की नींव ईंट-दर-ईंट वास्तुशास्त्र पर टिकी है. नहीं तो इतना बड़ा संयोग होना संभव ही नहीं है कि शहर के सारे कामयाब होटल सेक्टर 35 की एक ही लाइन में हों और कई अस्पताल होते हुए भी लोग सर्दी-जुकाम जैसी मामूली बीमारियों के इलाज के लिए पीजीआई में जमावडा लगाए रखें. और यह भी कि शहर का शमशान घात ठीक उसी दिशा में बन जाए जहाँ चन्दालिका वास मना जाता है. फिर यह भी संयोग मान लिया जाये कि वास्तुशास्त्र घर के जिस कोने में पानी रखने की सलाह देता है, शहर की वही दिशा झील बनाने के लिए उपयुक्त मान ली जाये. आज का चंडीगढ़ एक दिन में नहीं बना. पचास साल के दौरान शहर में एक-एक करके सेक्टर बने और उनमें आबादी बढ़ी. लेकिन आश्चर्य इस बात का होना चाहिए कि शहर का विकास वास्तुशास्त्र के बाहर नहीं जा पाया. लाख कोशिशें करने के बावजूद दक्षिणी सेक्टरों में जनसँख्या घनत्व रुक नहीं पा रहा. अगर इसका जवाब यह दिया जाए कि वास्तुशास्त्र के हिसाब से किसी घर या स्थान विशेष का दक्षिणी कोना रहने और सोने के लिए आरक्षित होता है तो शायद इस रहस्य को समझा जा सकता है कि क्यों दक्षिण मार्ग के पार बसे सेक्टरों में आबादी इतनी अधिक है और क्यों सेक्टर 48 और 49 के फ्लेट्स की मांग अधिक है. वास्तुशास्त्र ज्योतिषीय दृष्टि से किसी भी वस्तु को उसके तय स्थान और दिशा में स्थापित करने से सम्बंधित है. हालांकि बहुत से नक्शानवीस इस बात से सहमत नहीं होंगे कि फ्रांस जैसे देश के बाशिंदे कर्बुजिये को वास्तुशास्त्र का लेशमात्र भी ज्ञान था. लेकिन इतने बड़े शहर को बसाने के बनाया गया मास्टर प्लान अगर पूरी तरह वास्तुशास्त्र के नियमों पर फिट बैठे तो कम से कम इस बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता कि यह शहर विकास, तरक्की करने और फलने-फूलने के लिए ही बना है.वास्तुशास्त्र के नियम को अगर लें तो किसी भी नगर को बसाने के लिए एक ऐसे आयताकार भूखंड का चुनाव करना चाहिए जिसके उतरी दिशा में पहाड़ या पानी का बहाव हो. इसके बाद उस भूखंड के बीचोबीच एक दुसरे को काटती (कॉस्मिक क्रॉस) हुई दो लाईने खीचनी चाहिए जिनमे जिस एक लाइन भूखंड के आरपार होनी चाहिए. जिस स्थान पर यह लाईनें एक-दुसरे को काटती हों, वहां जन प्रतिनिधियों और प्रशासनिक स्तर के व्यक्तियों के कामकाज की जगह होनो चाहिए. चंडीगढ़ के बारे में यह नियम पूरे उतरते हैं. उत्तर दिशा में पहाड़ और पास में बहने वाली बरसाती नदी है. शहर के आरपार होता मध्यमार्ग और जन्मार्ग जिस स्थान पर एक दुसरे को काटते हैं, वहीँ सेक्टर 17 में एस्टेट ऑफिस, ड़ीसी ऑफिस और नगर निगम बना है. शास्त्रों में ऐसे स्थान पर ब्रह्मा जी का चार दरवाजों वाला मंदिर बनाए जाने की बात भी कही गयी है। वास्तु पुरुष मंडल सिद्धांत यह कहता है कि भूखंड या मकान के उत्तर में गृह स्वामी या उस व्यक्ति का आसन होना चाहिए जो महत्वपूर्ण और तर्कसंगत फैसले ले सके. अब इसे भी संयोग ही मान लिया जाए कि महत्वपूर्ण फैसले लेने की अथोरिटी हाईकोर्ट और विधान सभा इसी दिशा में बने हैं. बृहस्पति और केतु द्वारा नियंत्रित उत्तर-पूर्व दिशा को चिंतन और पानी रखने के लिए सर्वोत्तम माना गया है. इस दिशा में सुखना झील बनी हुई है. ज्योतिष विज्ञानं के मुताबिक बुध ग्रह शिक्षा और चिकित्सा को नियंत्रित करता है और भूखंड में उत्तर दिशा की प्रभावित करता है. वास्तुशास्त्र भी इस दिशा में विद्यालय या अस्पताल बनाने की सलाह देता है. इसी दिशा में बने यूनिवर्सिटी और पीजीआई अपने-अपने क्षेत्र में नाम रखते हैं और यह भी कि सेक्टर 32 में बड़ा अस्पताल और उसमें बराबर के डॉक्टर होने के बावजूद पीजीआई का रूतबा और ही है. यही गवर्नमेंट कालेजों के बारे कहा जा सकता है जो संयोगवश बुध के प्रभाव क्षेत्र में ही बने हुए हैं. सेक्टर 42 में लड़कियों के लिए और सेक्टर 46 में कामन गवर्नमेंट कालेज होने के बावजूद सेक्टर 11 के कालेजों में दाखिले के लिए मारामारी होती है. चंडीगढ़ के नक्शे के ऊपर अगर वास्तुपुरुष को रख दिया जाए तो कई आश्चर्यजनक तथ्य उभरकर सामने आते हैं. इससे पता चलता है कि सेक्टर 16 में बनाया गया रोजगार्डन ठीक उसी जगह पर आता है जहाँ वास्तुपुरुष के फेफडे हैं, यानी सांस लेने के लिए खुला स्थान. इसी तरह इस नक्शे के हिसाब से जहाँ सेक्टर 35 है, वह वास्तुपुरुष के पेट के हिस्से में और शायद यही कारण हैं कि इस सेक्टर में इतने होटल खुल गए हैं और सभी कामयाब हैं. वास्तुपुरुष यह भी बताता है कि चंडीगढ़ के आर्किटेक्चर के संभंध में यह भी तथ्यपरक है कि शहर का इंडस्ट्रियल एरिया दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थान पर है जो बृहस्पति नियंत्रित है और अग्नि है सम्बंधित है. और यह भी कि उत्तर-पश्चिम दिशा, जिसे शास्त्र गौशाला के लिए उपयुक्त मानते हैं, में ही धनास की वह मिल्क कालोनी बन गयी है जिसके लिए कोई प्लान लेआउट नहीं था. और इन सब तथ्यों के बावजूद अगर यह न मन जाए कि चंडीगढ़ का नक्शा वास्तुशास्त्र पर टिका हुआ नहीं है, तो फिर इस बात पर जोर दिया जा सकता है कि कर्बुजिये ने चंडीगढ़ का नक्शा बनाने के लिए छ फ़ुट दो इंच के हाथ उठाए हुए जिस काल्पनिक व्यक्ति के दायरे को इकाई माना है, वास्तुपुरुष का आकर भी ठीक उतना ही है.

2 comments:

संगीता पुरी said...

रोचक तथ्‍यों से भरपूर आलेख ... पर क्‍या अन्‍य शहरों पर भी वास्‍तुशास्‍त्र का ऐसा ही प्रभाव देखा जा सकता है ?

बवाल said...

बहुत बढ़िया और बहुत उम्दा लेख। इन जानकारियों से वास्तु में आस्था रखने वालों को बल मिलेगा।