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Saturday, May 22, 2010

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा...!!


इतने साल तक चड़ीगढ़ में रहने के दौरान शायद शहर की सीमा में ही बसे इस गाँव में जाने की जरूरत शायद एक या दो बार ही पड़ी. इसलिए इस इस गाँव के नाम और इसके इतिहास के बारे में जानने के बारे में भी कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं हुई. लेकिन हाल ही में मुझे यह पता लगा कि इस मजाकिया से लगने वाले नाम का सम्बन्ध महाभारत काल से है.
डडू माजरा..यह नाम अपने आप में सिर्फ इतना आकर्षण रखता है है कि पंजाब के बहुत से गाँवों के नामों की तरह इसका नाम भी जानवरों पर है. पंजाबी में 'डडू' मेंढक को कहते हैं. अब शायद आपको भी यह नाम मजाकिया लग रहा हो.
यहाँ बता देता हूँ कि पंजाब के मालवा इलाके में दर्जनों गाँवों के नाम जानवरों के नामों पर हैं और काफी मजाकिया लगते हैं. हाल ही में कुछ गाँवों की पंचायतों ने तो सरकार को लिखकर भी दिया है कि उनके गाँव का नाम बदल दिया जाए क्योंकि उन्हें उनके गाँव का नाम बताते हुए शर्म आती है. सिरसा के जिस गाँव में मेरी बुआ रहती है, उसके पास ही एक गाँव है 'कुत्ते वढ' यानि कुत्तों को काटने वाला. कोई तीन दशक पहले बंजर जमीन वाले इस गाँव में मेरे एक भाई ने कुछ जमीन ली थी, जिसे उसने अपनी मेहनत से वहां फसलें लहलहा दी और फिर उसी गाँव में बसने का फैसला कर लिया. उसने जब अपना विजिटिंग कार्ड छपवाने का इरादा बताया तो मेरी बुआ के बेटे ने सुझाव दिया कि वह अपने नाम के साथ गाँव का नाम भी लिखवा ले, जैसे पंजाब में रिवाज है. तो उसके नाम का विजिटिंग कार्ड 'केवल सिंह कुत्तेवढ' के तौर पर बना. बाद में जब उसके कुछ दोस्तों ने उसे 'केवल' या 'केले' की बजाय ' हाँ बई, कुत्तेवढ, क्या हाल है?' कहना शुरू कर दिया तो उसने विजिटिंग कार्ड में 'भूल सुधार' भी किया.
ऐसे ही कई गाँव है जिनके नाम अब भी जानवरों के नाम पर हैं. बठिंडा के पास एक गाँव 'गिदडाँ वाली' है जहाँ के लोगों ने सरकार से मांग की है कि गाँव का नाम बदल कर इसके असली नाम शेरपुरा पर रखा जाये, जिसे सालों पहले एक धर्मस्थान का पानी चोरी करने के कारण एक साधू ने श्राप देकर शेरपुरा से गिदडाँवाली कर दिया था.
खैर, डडू माजरा का नाम बदलें की तो कोई मांग नहीं आये है, लेकिन यह मांग जरूर उठी है कि यहाँ बने महाभारत कालीन एक मंदिर का सुधार किया जाए. मैंने जब इसके बारे में सुना तो पता लगाया और पाया कि 'डडू' उस भील बालक को प्यार से घर में पुकारे जाने का नाम है जिसे महाभारत ग्रन्थ में 'एकलव्य' कहा गया है. यहाँ बना मंदिर वही जगह है जहाँ एकलव्य ने पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की मिटटी की मूर्ति बनाकर, उसे ही गुरु धार कर तीरंदाजी सीखनी शुरू की थी. यह जगह गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम 'गुरु गाँव' (आज के गुडगाँव) से एक सौ कोस की दूरी पर था. यहाँ एक कुआं भी है, शायद वही है जिसका जिक्र महाभारत में एकलव्य के घर के बारे में मिलता है. आज भी यह डडू माजरा की गुडगाँव से दूरी इतनी ही है, करीब तीन सौ किलोमीटर..!!

1 comment:

दिलीप said...

is sundar jaankaari ke liye shukriya...